अ) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
दूसरे दिन चिक की पहली पाँति में सात तारे जगमगा उठे, सात रं
अ) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
दूसरे दिन चिक की पहली पाँति में सात तारे जगमगा उठे, सात रंग के। सतभैया तारा ! अपने काम में मगन सिरचन को खाने-पीने की
सुध नहीं रहती । चिक में सुतली के फंदे डालकर उसने पास पड़े सूप पर निगाह डाली-चिउरा और गुड़ का एक सूखा ढेला । मैंने लक्ष्य
किया, सिरचन की नाक के पास दो रेखाएँ उभर आई । मैं दौड़कर माँ के पास गया । “माँ, आज सिरचन को कलेवा किसने दिया है,
सिर्फ चिउरा और गुड़ ?”
माँ रसोईघर के अंदर पकवान आदि बनाने में व्यस्त थी । बोली, “अरी मँझली, सिरचन को बुंदिया क्यों नहीं देती ?”
“बंदिया मैं नहीं खाता, काकी !” सिरचन के मुँह में चिउरा भरा हुआ था । गुड़ का ढेला सूप में एक किनारे पर पड़ा रहा,
अछूता।
माँ की बोली सुनते ही मँझली भाभी की भौहें तन गई । मुट्ठी भर बुंदिया सूप में फेंककर चली गई।
सिरचन ने पानी पीकर कहा, “मॅझली बहुरानी अपने मैके से आई हुई मिठाई भी इसी तरह हाथ खोलकर बाँटती हैं क्या ?”
बस, मंझली भाभी अपने कमरे में बैठकर रोने लगी। चाची ने माँ के पास जाकर कहा- “मुँहलगाने से सिर पर चढ़ेगा ही।…
किसी के नैहर-ससुराल की बात क्यों करेगा वह ?
“मँझली भाभी माँ की दुलारी बहू है । माँ तमककर बाहर आई- सिरचन, तुम काम करने आए हो, अपना काम करो । बहुओं
से बतकुट्टी करने की क्या जरूरत ? जिस चीज की जरूरत हो, मुझसे कहो।”
सिरचन का मुँह लाल हो गया। उसने कोई जवाब नहीं दिया । बाँस में टॅगे हुए अधूरे चिक में फंदे डालने लगा।
मानू पान सजाकर बाहर बैठकखाने में भेज रही थी। चुपके से पान का एक बीड़ा सिरचन को देती हुई इधर-उधर देखकर बोली
“सिरचनदादा,
काम-काज का घर ! पाँच तरह के लोग पाँच किस्म की बात करेंगे। तुम किसी की बात पर कान मत दो।”
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